एक आंख से दृष्टिबाधित और दूसरी आंख से दूर का देखने में समस्या से पीड़ित बिनोद बिहारी मुखर्जी को 1957 में पूरी तरह दिखना बंद हो गया था। मुखर्जी बाबू शांति निकेतन में कला शिक्षक थे। और नंदलाल बोस के शिष्य थे। उनकी कला में समय समय पर शांति निकेतन में आने वाले चीनी और जापानी कलाकारों का प्रभाव देखा जा सकता है। मुखर्जी बाबू गंभीर नेत्र समस्या से पीड़ित थे। 1956 में एक असफल आंख मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो देने के बाद भी पेंटिंग करना और भित्ति चित्र बनाना जारी रखा।
बिनोद बिहारी मुखर्जी का कला जीवन:
विनोद बिहारी मुखर्जी का जन्म 7 फरवरी 1904 में 'कोलकाता' के 'बेहाला' नगर में हुआ था।
बिनोद विहारी मुखर्जी को शांतिनिकेतन में अवनीन्द्रनाथ , गगनेन्द्रनाथ, व नंदलाल बोस आदि के चित्रो ने प्रभावित किया।
वह 1936 में जापान भी गए जहाँ उन्हें जापानी चित्रकार सोसात्सु की कला ने आकृष्ट किया।
इन्होंने शांतिनिकेतन के कला भवन, चीन भवन, व हिंदी भवन में भित्तिचित्र भी बनाये।
- यह भी पढ़ें-👉 लन्दन के 'डेविड ज्विरनर गैलरी'(David Zwirner)में बिनोद बिहारी मुखर्जी की प्रदर्शनी लगी।
डॉक्युमेंट्री फ़िल्म:
कला फ़िल्म निर्माता स्वर्गीय 'सत्यजीत रे' ने उन पर वृत चित्र बनाया , जिसे "इनर आई" टाइटल दिया।
1949-50 में इन्होंने नेपाल संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया।
चित्रित विषय व माध्यम:
इन्होंने जल रंग, तैल रंग, टेम्परा पद्धति से कार्य किया। उनके द्वारा चित्रित "टी लवर" चित्र में वृक्षों एवं पौधो की लाल व नीली उभरी हुई पत्तियों, आकृतियों के गहरे नीले केश, स्थूल पुरुषाकृति एवं उनकी मुख मुद्रा चित्रण में विशिष्ट वातावरण उत्पन्न करते हैं।
पुरस्कार :
मुखर्जी को 1974 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारतीय गणराज्य द्वारा दिये गए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक हैं। इसके अलावा उन्हें देशिकोत्रं(1977), और प्रतिष्ठित रवींद्र पुरस्कार(1980) भी मिला।
देहांत:
11 नवंबर 1980 को मुखर्जी बाबू का देहांत हो गया।
एक टिप्पणी भेजें