भारत के 74 वें गणतंत्र दिवस पूर्व संध्या को पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की गई है। जिसके अनुसार मधुबनी की सुभद्रा देवी सहित बिहार के तीन लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा
सुभद्रा देवी को पेपरमेशी कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा जाएगा। तो वहीं सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार और दूसरे कपिलदेव प्रसाद को बावन बूटी के लिए पद्मश्री मिला है।
सुभद्रा देवी के बारे में:
सुभद्रा देवी का ससुराल मधुबनी जिला मुख्यालय के पास भिट्ठी सलेमपुर गांव में है। सुभद्रा देवी की तीन बेटियां और दो बेटे हैं। वर्तमान में वह अभी अपने छोटे बेटे के साथ दिल्ली में हैं। सुभद्रा देवी का मायका दरभंगा जिले में मनीगाछी के निकट बलौर गांव में है। 1980 में इन्हें राज्य पुरस्कार और 1991 में राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
क्या है पेपरमेशी कला?
पेपरमेशी मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है, लेकिन बिहार की सुभद्रा देवी ने बचपन में ही इस कला को सीख लिया था।
कागजों को गलाकर उसे लुगदी के रूप में तैयार करना और फिर फूले हुए कागज को कूटकर उसमें गोंद नीना और थोथा का इस्तेमाल कर पेस्ट बनाना और उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेशी कला कहलाता है।
इसकी मदद से अलग अलग तरह की कलाकृतियां बनाई जाती है। भारत में त्योहारों के वक्त भी इस कला से मुखौटे और छोटी छोटी मूर्तियां बनाई जाती है। आम तौर पर आपने पेपरमेशी कला का इस्तेमाल दशहरे जैसे त्योहारों के मौके पर रावण या मेघनाथ के मुखौटे पर देखा होगा।
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इसके अलावा दक्षिण भारत में कथकली के नर्तक का मुखौटा भी पेपरमेशी कला से तैयार किया जाता है। इस कला की सुंदरता इस पर की गई चित्रकारी से उभरकर सामने आता है। पेपरमेशी से मुखौटे, खिलौने, मूर्तियां, की-रिंग, पशु-पक्षी, ज्वेलरी और मॉडर्न आर्ट की कलाकृतियां बनाई जाती हैं।
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इस तरह तैयार किया जाता है लुगदी:
पेपरमेशी कला के लिए सबसे जरूरी है लुगदी तैयार करना। लेकिन अगर आपको नहीं पता कि आखिर इसे तैयार कैसे किया जाता है तो सबसे पहले अपको एक टब में पानी भर कर रखना है। इसके बाद कागज के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें टब के पानी में अच्छे से भिगो दिया जाता है।
लुगदी बनाने की प्रक्रिया में इस बात ख्याल रहना चाहिए कि पानी कागजों के ऊपर हो और इसे एक हफ्ते पर बदला जाए। कागज के टुकड़े को पानी में भिगोए दो हफ्ते होने के बाद उसे टब से निकाल दिया जाता है। इतने दिनों तक पानी में रहने के कारण टूटे हुए कागज का में से छोटा छोटा रेशा निकल आता है और तब कागज लुगदी के लिए तैयार हो गया है।
दो हफ्ते बाद कागज को पानी से निकाल कर ऊखल में कूटा जाता है और कूटने के क्रम में नीला थोथा व गोंद मिला कर उसे तैयार कर दिया जाता है। इसके बाद आप जिस वस्तु का आप आकार बनाना चाहते हैं ,उसका आकार दे सकते हैं।
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