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राजा रवि वर्मा की पेंटिंग |
प्रागैतिहासिक काल से माना
जाता है समय के साथ साथ ज्यो ज्यो
मानव ने विकास किया , भारत में यह कला
भी अपने उत्कर्ष को प्राप्त करती रही .
मानवीय भावो की अभिव्यक्ति ही कला है .
इसका प्रयोग सर्वप्रथम `` ॠग्वेद ``
में हुआ . यथा कला , यथा शफ़ ,मध् ,
शृण स नियमति .``
प्राचीन भारतीय मान्यताओं में
कला के लिए `शिल्प ` शब्द का ही
प्रयोग सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने में हुआ . यथा कला , यथा शफ़ ,मध् ,
शृण स नियमति .``
प्राचीन भारतीय मान्यताओं में
कला के लिए `शिल्प ` शब्द का ही
प्रयोग हुआ है ..
नाट्यशास्त्र शिल्प और कला दोनों
शब्दों का अलग अलग में किआ है .
प्राचीन ग्रंथो में कलाओ की विविध
सूचियां वर्णित है - `कामसूत्र में 64
कलाएँ ,क्षेमेन्द्र के `कलाविलास` में
64 जनोपयोगी, 32 पुरूषार्थ जिसमे
धर्म , अर्थ काम ,व् मोक्ष सम्बन्धी
कलाएँ , 64 कलाएँ सोनारो की,
64 कलाएँ वेश्याओ की , 10 चिकित्सको की,
16 कायस्थो की तथा 100 सार कलाओं
का वर्णन किया गया है . इससे
स्पष्ट है की किसी कार्य को कुशलता
से सम्पादित करना ही कला है .
कलाओं का वर्गीकरण अलग अलग
युगों में अलग अलग विधियों से
होता रहा है. . ललित कलाओं में
मुख्य रूप से पांच कलाओं की
गणना हुई है - संगीत ,काब्य, चित्र ,
मूर्ति ,तथा स्थापत्य(वास्तुकला).
ललित कला सौन्दर्य प्रधान होती है .
ललित कलाओ का उल्लेख प्राचीन
भारतीय साहित्य में कही भी
उपलब्ध नहीं है. इसका नामकरण
पाश्चात्य संपर्क की देन है .
पाश्चात्य विद्वानों ने ललित
कलाओं के अंतर्गत पांच कलाए मानी है .
प्राचीन भारत में 64 प्रकार की
कलाओं से लोग परिचित थे .
यह अलग बात है की समय के
साथ साथ इन कलाओं में भी
परिवर्तन होता गया . कालांतर
में इनकी संख्या घटती गयी .
64 से उनकी संख्या 48 हो गयी
फिर बाद में 32 , 16 और 8 रह गयी
, जो आज भी कला के 8 अंगो के
नाम से प्रसिद्ध है . 18वी सदी में
कला की परिभाषा सिमित ही रह
गयी तथा 8 अंगो से घट कर केवल 6
ही रह गयी -1 - संगीत ,2- नृत्य
,3- कविता, 4- मूर्तिकला ,5-
चित्रकला, 6- वास्तुकला .
इन कलाओं को पुनः दो
भागो में विभक्त
किया गया
1- गतिशील कलाएँ (dynamic)
( संगीत ,नृत्य ,काब्य (कविता)
2- स्थिर कलाएँ ( static arts)
( चित्र ,मूर्ति , वास्तु )
कुछ विद्वानों ने कला
की अलग अलग अपने विचार
पस्तुत किये है जो निम्न है-
1 प्लेटो- कला सत्य की अनुकृति है
2 अरस्तु - कला अनुकरण है .
3 गेटे - महान सत्य की प्रतिकृति
प्रस्तुत करना
ही कला की सबसे बडी समस्या है .
4 क्रोचे -कला प्रभावों की अभिव्यक्ति है.
5 हिगेल - इन्होने कला को आदि
भौतिक सत्ता
को ब्यक्त करने का माध्यम माना है .
6 टालस्टॉय -रंग,ध्वनी ,शब्द , कार्य
आदि के द्वारा भावो की वह
अभिव्यक्ति जो श्रोता ,दर्शक और
पाठक के मन में भी वही भाव
उत्पन्न कर दे कला है .
7- फ्रायड - दमित वासनाओ का
उभरा हुआ रूप ही कला है .
कला अध्ययन के श्रोत (source of art study)
1 - ऐतिहासिक ग्रंथ ( historical books)
2 - शिलालेख (Inscriptions) -
शिलाओं पर अंकित प्राचीन लेखो
से कला , धर्म एवं वास्तु निर्माण
के विषय में जानकारी होती है
.बादामी अजन्ता बाघ आदि गुफाओं
से शिलालेख प्राप्त हुए है.
3- प्राचीन खंडहर ( old ruins)-
अजन्ता , एलोरा , बादामी सारनाथ
आदि जगहों में खुदाई और
सफाई क बाद ही कलाकृतियों के
विषय में जानकारी मिली .
4 - (बादशाहों द्वरा लिखी आत्म कथाये
( Autobiography) - बाबर द्वारा लिखित
`वाकयात -ए -बाबरी जहागीर द्वारा
लिखी `` तुजुक -ए - जहाँगीरी और
अबुल फज़ल द्वरा लिखी ``
आइन -ए - अकबरी `` के द्वारा
चित्रकला सम्बन्धी महत्वपूर्ण
जानकारी प्राप्त होती है .
5 -मोहरे तथा मुद्राये (Seals and Coins)-
मोहन जोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त
मोहरों पर अंकित पशु आकृतियों
से उस समय की उन्नत मूर्तिकला
का अनुमान लगाया जा सकता है .
6 - यात्रियों के वृतांत ( Account of Travellers)
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की
कलाकृतियों का विवरण
विदेशी यात्री ``मगस्थ्निज`` ने दिया है .
चन्द्रगुप्त-विक्रमादित्य के समय
का वृतांत ` फाह्यान `` ने लिखा है .
Good info.
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