पूर्व बौद्धकाल (जोगीमारा ) एवं बौद्ध चित्रकला ( अजन्ता बाघ सिगिरिया )

  जोगीमारा :
            भारतीय चित्रकला में सर्वप्रथम जोगीमारा की गुफा में छतो पर बने चित्रों के उदाहरण प्राप्त होते है। और भित्ति चित्रों का निर्माण तकनीकी का नवीन अध्याय इसी गुफा से आरम्भ होता है कुछ विद्वानों ने इन चित्रों की परम्परा को ही अजन्ता की आरम्भिक भित्ति चित्रण शैली का प्रेरक माना है 
   
                जोगीमारा गुफा वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ियों पर 70 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।.यहाँ रामगढ की पहाड़ियों पर कई गुफाये है -सीता बोंगरा , लक्ष्मण बोंगरा, वशिष्ठ गुफा , कबीर चौरा ,सिंह द्वार ,रावण द्वार आदि . केवल जोगीमारा गुफा में ईसा से प्रायः 300 वर्ष पूर्व के कुछ चित्र विधमान है .
                   
                यह गुफा 10 फुट चौड़ी तथा 6 फुट ऊँची है .इस गुफा में प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह वरुण देवता का मंदिर था ,जिसकी सेवा में सुतनुका नामक देवदासी रहती थी . डॉ ब्लख के अनुसार इस गुफा के लेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के है. इन खंडो में मानवाकृतियाँ, हाथी , मछली , तालाब , पेड़ ,पुष्प ,पंक्षी आदि का चित्रांकन किया गया है. इसकी छत को कुछ आयताकार खंडो में लाल रेखाओ द्वारा विभक्त करके चित्रांकन  किया गया है. चित्रों में प्रायः सफ़ेद , लाल , तथा काले रंग का ही प्रयोग हुआ है . सफ़ेद रंग खड़िया , लाल रंग हिरौंजी तथा काला रंग हर्रा  ( Myrobalan ) नामक फल से तैयार किया गया है. चित्रों को सूक्ष्मता से देखने पर ज्ञात होता है की इन चित्रों को पुनः ऊपर से रंग कर सुधरने की निष्फल चेष्टा की गयी है 
                     

                नोट -  श्री असित कुमार हाल्दर व् श्री समरेन्द्र नाथ गुप्ता ने सन 1994  ई. में भारतीय पुरात्तव विभाग के निमन्त्रण पर जोगीमारा गुफा के भित्ति चित्रों की प्रतिलिपियाँ बनाई थी . 

               - श्री हाल्दर ने यहाँ कुल 7 चित्रों के विषय में उल्लेख किया है .

                                              ( अजन्ता )         

 

                         भारतीय कला इतिहास की स्वर्ण पृष्टिका , विश्व प्रसिद्ध अजन्ता के गुफा मंदिर महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के केंद्र से 106 किमी पर अवस्थित है.यहाँ कुल 30 गुफाये है. जिनमे 25 विहार तथा 5 चैत्य है .इनकी छते ऊँची नीची है . विहार गुफाओ को संघाराम भी कहा जाता है 9, 10, 19, 26, 29  न० की गुफाये चैत्य है तथा शेष विहार है . चैत्य गुफाये प्रार्थना की दृष्टी से और विहार गुफाए रहने तथा अध्यन करने की दृष्टी से बनायीं गयी .इन चैत्य गुफाओ में भी चित्र है परन्तु अधिकांश चित्र विहार गुफाओ में बनाये गये थे . आज 1 2 9 10 16 17 न० की गुफाओ में चित्र शेष है .इन गुफाओ में 9 वी तथा 10 वी गुफा सबसे प्राचीन है तथा 17 वी गुफा में सबसे अधिक  चित्र मिलते है .
                       इन गुफाओ का निर्माण  शुंग , सातवाहन , वाकाटक, चालुक्य , कुषाण ,गुप्त आदि अनेक राजाओ के समय ( 200 ईसा पू . से 700 ई पू . तक ) में हुआ , किन्तु प्रधानतः गुप्त काल में सर्वश्रेष्ठ कार्य हुआ


 नोट - गुफा संख्या 9 व् 10 का निर्माण काल -200 ई.पू. से 300 ई. पू. के मध्य है 

        - गुफा संख्या 16 व् 17 का निर्माण काल -5 वी शती ई. चतुर्थ चरण में हुआ

        -गुफा संख्या 1 व् 2 का निर्माण काल -5 वी शती उत्तरार्ध से छठी शती उत्तरार्ध तक 

             

                       
 
  

(  अजन्ता चित्रों की खोज )

          1819 ई . में इन कला मन्दिरों का दर्शन  मद्रास सेना के उन अधिकारीयों को हुआ जो वह शिकार की खोज में पहुचे थे . उसके 3 वर्ष बाद 1822 में विलियम रस्किन ने बोम्बे  लिटरेरी सोसाइटी के लिए एक लेख में अजन्ता में प्राप्त कला मंदिरों का विस्तृत वर्णन पढ़ा . फिर 1824 ई. में जेम्स ई . अलेक्जेंडर ( James E. Alexender) ने इन गुफाओ का दर्शन किया और उन्होंने इसमें सुरक्षित सुन्दर चित्रों की सुचना `रायल एशियाटिक सोसाइटी` को दी .1843 ई. में भारतीय मूर्तिकला वास्तुकला के जिज्ञासु  जेम्स फर्गुसन ने चित्रित  गुफाओ का विवरण लिखकर `ईस्ट इंडिया कम्पनी` को दिया और इनकी सुरक्षा के लिए आग्रह किया. फलस्वरूप रोबर्ट गिल नामक एक महान चित्रकार  1844 ई. में भेजा गया उसने अजन्ता के चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की जिनका की इंग्लैंड में क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शन हुआ. परन्तु 1866 ई. में आग लग जाने से ये सब प्रतिलिपिया  जल गयी . तदोपरान्त 1909-11 लेडी हरिंघम भारत आई और उन्होंने नन्दलाल बोस , असित कुमार हाल्दर , समरेन्द्र नाथ गुप्त आदि चित्रकारों की सहायता से प्रतिलिपियाँ तैयार करायी . बाद में ललित कला अकादमी ने यहाँ के चित्रों के फोटोग्राफ तैयार किये .काफी समय से अब इन चित्रों की सुरक्षा का कार्य भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग कर रहा है .
         
( चित्रों का विषय )


अजन्ता गुफाओं के चित्रों के मुख्य विषय बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थी गौतम बुद्ध के जीवन और जातक कथाओ को यहाँ पर अत्यंत सुन्दर भावो से चित्रित किया गया है.

 वाचस्पति गैरोला के अनुसार विषय की दृष्टि से तीन प्रमुख भागो में बाटा जा सकता है 1- आलंकारिक 2-रूपभैदिक 3-वर्णनात्मक .

                   पहली श्रेणी में पशु , पुष्प बेले , राक्षस ,किन्नर ,नाग , गरुण यक्ष , गंधर्व और अप्सरा आदि को रखा जा सकता है .दूसरी श्रेणी के चित्रों में बुद्ध , बोधिसत्व, राजा ,रानी विभिन्न मुद्राओ में बुद्ध, उनका जन्म .निर्वाण और जीवन की अलौकिक घटनाये प्रमुख है . तीसरी श्रेणी के चित्र जातक कथाओं पर आधारित है . अधिकांस चित्र इसी प्रकार के है 
    

   चित्रों की रंग व् चित्रण विधि 

                     अजन्ता के चित्र टेम्परा स्टाइल के बनाये जाते थे . जिस दिवार पर चित्र बनाना होता था वहा पत्थर को किसी औजार से खुरदुरा किया जाता था उस पर पत्थर का चुरा गोबर और धान की भूसी मिलाकर गारा बनाकर लेप चढ़ाया जाता था .इस लेप पर चुने का पलस्तर चढाया जाता था इस पलस्तर पर जब कुछ गीला ही रहता था ,लाल रंग की रेखाओ से जो भी चित्र बनाना होता था उसका रेखांकन किया जाता . तदोपरान्त स्थानीय रंग भरे जाते थे और अंत में काले या भूरे रंग से सीमा रेखाएं बनाई जाती थी .
                   
                  अजन्ता के चित्रकारों के पास गिने चुने ही रंग थे जो की वो प्रकृति से प्राप्त खनिज वस्तुओ से तैयार करते थे अधिकतर मिटटी के ही रंग होते थे . सफ़ेद , लाल, पिला , गेरुआ, हरा तथा कही कही नीला रंग भी प्रयुक्त किया गया है .यहाँ के प्रारम्भिक चित्रों में चटख एवं चमकदार रंगों का प्रयोग किया गया . सफेद रंफ चुने अथवा खड़िया से बना होता था. हरा रंग एक पत्थर को घिसकर तैयार किया गया जिसे टेरावर्ट कहते है 
बोधिसत्व पद्मपाणि
Lying Buddha Ajanta Caves India
 
गुफा संख्या 1-  यह एक विहार गुफा है .इस गुफा की बायीं दीवार पर विश्व प्रसिद्ध पद्मपाणि बोधिसत्व का चित्र है. इसमें हाथ में कमल लिए बोधिसत्व को विश्व चिंतन में लीन दर्शाया गया है. दूसरा विश्व प्रसिद्ध चित्र `मार विजय` का है चारो ओर मार (कामदेव) की सेवा उन्हें अनेक प्रकार से प्रलोभन देते हुए चित्रित की गयी है. इसी गुफा में ब्रजपाणी , शिविजातक, नागराज, शंखपाल , श्रावस्ती का चमत्कार ,महाजनक की कथा आदि चित्र अंकित अंकित है

 गुफा संख्या 2-  यह भी एक विहार गुफा है .इस गुफा के बायीं भित्ति पर `माया का स्वप्न` तृषित-स्वर्ग तथा बुद्ध जन्म के चित्र है .इस गुफा का दयायाचना का चित्र सर्वोत्कृष्ट कहा जाता है.चित्र में राजा तलवार लिए नर्तकी को सजा देने जा रहा है . नर्तकी उसके पैरो में पड़ी क्षमा की भीख मांग रही है .इसी गुफा में `विदुर पंडित जातक` और झुला झूलती राजकुमारी के चित्र है 

                       
                
गुफा संख्या 9-  यह एक चैत्य   गुफा है। इस गुफा में स्तूप पूजा वाला विश्व प्रसिद्ध चित्र है। लगभग 16 व्यक्तियों का एक समूह स्तूप की ओर बढता अंकित किया गया है। इसी गुफा में भीतरी भाग पर बायीं ओर खिड़की के उपर कन्दरा पर एक बृक्ष की छव में दो `नाग पुरुष` बैठे है। 

गुफा संख्या 10-- यह भी एक चैत्य गुफा है . यह गुफा सातवाहन काल में निर्मित हुई इस गुफा में छ्द्न्त जातक का प्रसिद्ध चित्र अंकित है .. छ्दंत की यह कहानी गुफा संख्या 17 में पुनः चित्रित की गयी है .एक अन्य चित्र श्याम जातक (साम जातक) की कथा भी इस गुफा में चित्रित है .इसी गुफा में बोधिसत्व का प्रसिद्ध चित्र भी अंकित है.जिनका दाया हाथ कल्याण तथा बाया हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है.

  
       गुफा संख्या 16-  यह एक विहार गुफा है इस गुफा के मध्य मे बुद्ध की प्रलम्बपाद मुद्रा में मूर्ति बनी है इस गुफा में `सुजाता की खीर` `नन्द की दीक्षा` आदि जातक कथाओ का चित्रण है. इसी गुफा में मरणासन्न राजकुमारी का प्रसिद्ध चित्र है .
             
        गुफा संख्या 17-   यह भी एक विहार गुफा है . इस गुफा का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र `राहुल समर्पण` का है जिसमे भगवान बुद्ध के भिक्षा मांगने पर यशोधरा अपने एकमात्र पुत्र राहुल को समर्पित करते हुए चित्रित है .इसी गुफा में  `मृगजातक` तथा `सिंघलावदान` की कथा भी चित्रित है 
            
Wide view of Cave 26, a late chaitya hall with a stupa
          
Stupa with standing Buddha in Cave 19

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