सिगिरिया की चित्रकला ( 5 वी शताब्दी )

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                                बौद्ध धर्म को फ़ैलाने के लिए बौद्ध भिक्षु एवं कलाकार सुदूर पूर्व तथा दक्षिणी देशो की ओर गये .श्रीलंका में भी अजन्ता की चित्रकला इसी रूप में पहुची . ये गुफाये कोलम्बो से लगभग 165 किमी दूर मटाले जिले में है सिगिरिया का रास्ता जंगलो के मध्य से होकर जाता है .आकार में सुसताते हुए सिंह के सामान होने से इस शैलखण्ड को सिंघगिरी नाम प्राप्त हुआ जो कालांतर में सिगिरिया नाम से प्रसिद्ध हुआ.

                                         यहाँ एक 600 फीट ऊँची पहाड़ी है जिसमे गुफाओ का निर्माण राजा कश्यप के समय के माने जाते है जिनका राज्यकाल 479 से 497 ई. तक माना जाता है 

                                       1830 ई. में ब्रिटीश फ़ौज के एक पदाधिकारी को सिगिरिया गुफाओ का पता चला . यहाँ के चित्रों के देखकर अनायास ही होंठो पर आ जाता है .यहाँ 6 गुफाये है जिनमे विशेष चित्र केवल दो गुफाओ में ही है उन्हें विंसेट स्मिथ ने ए. तथा बी नाम दिया है .यहाँ पर ए. कक्ष में 4 तथा बी. कक्ष में 17 चित्र है कुल 21 रुपायनी स्त्रियों के चित्र बने है . चित्रों को लगभग अजन्ता के तरीके से ही बनाया गया है. सिगिरिया में अजन्ता का नीला रंग बिलकुल दिखाई नही देता ,चित्रकार केवल लाल, पीले , व् हरे रंग तक ही सिमित रहा .

                                        पहले कक्ष वाली नारियां अधिक लम्बी तथा दुसरे कक्ष की कुछ कम लबी है . इनमे एक चित्र विशेष है जिसमे राजकुल की महिलाये हाथ में फुल लिए पूजा करने जा रही है उनके साथ दासियाँ भी है इनको दैविक रूप देने के लिए पैरो की जगह बादल बनाये गये है 

                                       सन 1889 ई. में ' ए मुरे ' ने कई चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की जो आज कोलम्बो संग्रहालय में सुरक्षित है. श्रीलंका की सरकार ने 1895 ई. से 1905 ई. तक ' एच. सी. पीवेल ' ( पुरातत्व विभाग) के निर्देशन में सिगिरिया के गुफाओ का जीर्णोद्धार तथा सुरक्षा की व्यवस्था प्रारम्भ की.
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