दिल्ली। शिक्षा, महिलाओं, बच्चों, युवाओं और खेल मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने संसद को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय पारंपरिक और लोक कलाओं को आगे बढ़ाने के लिए कला शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके लिए स्कूली शिक्षा में संगीत, नृत्य, रंगमंच आदि विषयों की पढ़ाई अनिवार्य रूप से करवाने के लिए पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
राज्यसभा सांसद विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने पिछले दिनों संसद में यह रिपोर्ट पेश किया है। परफार्मिंग और फाइन आर्ट की शिक्षा में सुधार को लेकर पेश रिपोर्ट में लिखा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कला को शिक्षा के साथ जोड़ने पर जोर दिया है। इसके लिए स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी), राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) और विभिन्न यूनिवर्सिटी के विभाग मिलकर इसका पाठ्यक्रम तैयार करने का सुझाव दिया है। इसमें लोककथाओं, कहानियों, नाटकों, चित्रों आदि के रूप में स्थानीय परंपराओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कला क्षेत्र की पढ़ाई में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया है। दूरदराज समेत विदेशी छात्रों को जोड़ने के लिए इग्नू की तर्ज पर अधिक से अधिक रीजनल सेंटर खोले जाने चाहिए। इसके अलावा पाठ्यक्रम मार्केट डिमांड और तकनीक पर आधारित हों।
राष्ट्रीय कला या केंद्रीय कला विश्वविद्यालय बनाने पर जोर:
समिति ने कला क्षेत्र में छात्रों को भविष्य बनाने के लिए 'राष्ट्रीय कला विश्वविद्यालय' या केंद्रीय कला विश्वविद्यालय स्थापित करने पर जोर दिया है। इसमें लिखा है कि इस क्षेत्र के संस्थानों को आगे बढ़ावा देना जरूरी है। इससे इन संस्थानों की स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री को और अधिक मान्यता मिलेगी। इसके लिए भारतीय फिल्म व टेलीविजन संस्थान (एफटीटीआई), पुणे, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी), नई दिल्ली, अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय, मुंबई, और सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई जैसे संस्थानों को 'राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का दर्जा देने पर विचार किया जाना चाहिए।
साभार- अमर उजाला 16 फरवरी 2022 |
Courtesy- amar ujala news
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