देश के जाने माने दृश्य चित्रकार मो. सलीम का 83 साल की उम्र में निधन हो गया है।
उन्होंने शनिवार दोपहर (22 जनवरी 2022) मुरादाबाद में अंतिम सांस ली। उनके बेटे कमाल खाबर ने यह जानकारी दी है।
सैरा चित्रकार ( दृश्य) मो. सलीम का जन्म 5 जुलाई 1939 में अल्मोड़ा नगर में हुआ था। उनके निधन पर यहां कलाप्रेमियों ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
शिक्षा:
मो. सलीम ने लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की।
1959 में ललित कला में डिप्लोमा और 1960 में पोस्ट डिप्लोमा किया।
मो. सलीम का कला जीवन:
लखनऊ कला महाविद्यालय में ललित मोहन, वीरेश्वर सेन, गिरीश्वर सिंह, मदन लाल नागर, राम वेज, श्रीधर महापात्रा जैसे प्रख्यात कलाकारों से शिक्षा ली और वहीं रणवीर सिंह बिष्ट जैसे कलाकारों के साथ शिक्षण कार्य भी किया।
मो. सलीम 1961 में पंत विवि पंतनगर में बतौर ग्राफिक आर्टिस्ट कार्य करने लगे।
पहाड़ के प्रति विशेष लगाव:
मो. सलीम का पहाड़ के प्रति विशेष लगाव था। उनकी कला में कुमाऊं के समसामयिक जनजीवन का प्रभाव और लखनऊ की विशेष तकनीक का हुनर था। वह कहा करते थे कि समय को पकड़ना तो कलाकार की बड़ी जिम्मेदारी है।
उन्होंने पहाड़ की लोक जीवन शैली को हूबहू कैनवास पर उतारा था।
यहां की पर्वत शृंखलाएं, लोक आभूषण में स्त्री आकृतियां, अल्मोड़ा के पुराने भवन और बाजार, ग्रामीण दृश्य आदि उनकी तूलिका के शृंगार रहे हैं।
पुरस्कार:
मो. सलीम को 1995 में राज्य ललित कला अकादमी पुरस्कार, 2000 में उत्तरांचल कला पुरस्कार, मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति आदि द्वारा पुरस्कार मिले थे।
प्रमुख पेंटिग:
उत्तर प्रदेश का आंतरिक दृश्य (1959),
शोक गीत (1978),
कुमायूं की पहाड़ियों का आंतरिक रूप (2000),
द मिस्टिक ( 2005),
रूरल हैबिटेशन ( 1990),
हिमालयन रूट्स ( 2002),
रोपाई करती महिलाएं (2004),
द पास्ट होल्डिंग इट सेल्ज (2006),
पहाड़ी से घर को लौटते पशु (2009),
आध्यात्म दर्शन ( 2004),
हुक्का ( 1995) आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।
टीजीटी पीजीटी कला की तरफ से विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏼
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