जब महान धावक मिल्खा सिंह कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ आये: Milkha Singh

  • हाइलाइट:
  • भारत के महान धावक मिल्खा सिंह Milkha Singh  का निधन।
  • 91 साल की उम्र में चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली।
  • पिछले एक महीने से कोरोना से लड़ रहे थे।



भारत के महान धावक और फ्लाइंग सिख के नाम से प्रसिद्ध मिल्खा सिंह का निधन शुक्रवार 18 जून 2021 को देर रात निधन हो गया। वह 91 साल के थे। 

मिल्खा सिंह का जन्म 1929 में फैसलाबाद (पाकिस्तान) में हुआ था। भारत के विभाजन के बाद वह पाकिस्तान से भारत आये। विभाजन के बाद हुए दंगे के दौरान उन्होंने अपने माँ बाप और भाई बहनों को खो दिया था। 

मिल्खा सिंह के जीवन पर 2013 में एक फ़िल्म "भाग मिल्खा भाग" भी बनी जिसे जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने बनाई थी। 

जब महान धावक मिल्खा सिंह कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ आये। 

कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ में स्टूडेंट्स के साथ मिल्खा सिंह, 1960 के दौरान

{लेख साभार- जय कृष्ण अग्रवाल के फेसबुक वॉल से, प्रिंसिपल कला व शिल्प महाविद्यालय लखनऊ}

कला एवं शिल्प महाविद्यालय,लखनऊ की महान धावक फ्लाइंग सिक्ख सरदार मिलखा सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि।

मिल्खा सिंह जी के निधन से हम सभी आहत हुए हैं। वह एक महान धावक ही नहीं एक बहुत अच्छे और मिलनसार व्यक्ति थे।

छटे दशक के आसपास आचार्य सुधीर रंजन ख़ास्तगीर के निमंत्रण पर वह लखनऊ कला मंहाविद्यालय में छात्रों के साथ कुछ समय व्यतीत करने आये थे। 

आचार्य खास्तगीर का मानना था कि एक कलाकार को हर क्षेत्र के बारे जानकारी होना उसकी सृजनात्मक प्रवृत्तियों को विस्तार देता है और वह समय समय पर महान विभूतियों को छात्रों के साथ एक खुला संवाद स्थापित करने के लिए आमंत्रित करते रहते थे। 

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उद्धाटन जैसे औपचारिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अनौपचारिक वातावरण में छात्रों के साथ घुलमिल कर वार्तालाप करने को अधिक महत्व दिया जाता था। 

इसी क्रम में सरदार मिल्खा सिंह जी को भी आमंत्रित किया गया था। उन दिनों में स्वयं एक छात्र था और मुझे आज भी उन सुखद पलों का स्मरण है जो हमने सरदार मिल्खा सिंह जी के सानिध्य में व्यतीत किये थे। 

उन्होंने बहुत समय तक हमलोगों के साथ अपने अनुभव साझा किये और साथ ही हमें भी अपनी बात रखने का खुला अवसर दिया। 

उनके सानिध्य और सहज व्यक्तित्व ने हम सबको इतना प्रभावित किया कि महाविद्यालय में खेल कूद की गतिविधियां उन दिनों शहर में चर्चा का विषय बन गई थीं। 

महाविद्यालय में आयोजित किये जाने वाले वार्षिक खेककूद और मुक्ताकाशी कलामेला विशेष आकर्षण बन चुके थे।

मुझे आज भी स्मरण है मिल्खा सिंह जी की सीख जो उन्होंने कला के छात्रों को दी थी। 

उन्होंने कहा था कि कला और खेलकूद का सीधा नाता है। कला केवल हाथ की सफाई ही नहीं दिमागी कसरत भी है और खेलकूद दिमाग़ को ताकत देते है...



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