वह कलाकार जिसने दिहाड़ी मजदूर से पद्मश्री तक का सफर किया

 


भूरी बाई भारत के मध्य प्रदेश की एक भील कलाकार हैं। मध्य प्रदेश में झाबुआ जिले के पिटोल गाँव में जन्मी भूरी बाई भारत के सबसे बड़े आदिवासी समूह भीलों के समुदाय से हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार, शिखर सम्मान द्वारा कलाकारों को दिए गए सर्वोच्च राजकीय सम्मान सहित कई पुरस्कार जीते हैं। 

उन्हें 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया है ।

मध्यप्रदेश की आदिवासी पिथौरा कलाकार भूरी बाई को कला के क्षेत्र में भारत सरकार ने पद्म श्री (2021) सम्मान से नवाजा हैं। 

भूरी बाई पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने गांव में घर की दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरूआत की.

भूरी बाई की कहानी:

बचपन में परिवार चलाने के लिए मुझे मजदूरी करनी पड़ती थी। नाटा कद होने की वजह से काम नहीं मिलता था। 6 रु . दिहाड़ी मिलती थी।

गांव में शादी - ब्याह होता तो दीवारों पर चित्रकारी करने का मौका मिलता।

यही सब करते - करते मेरी शादी हुई और पति के साथ मजदूरी करने झाबुआ से भोपाल आई।

भारत भवन (भोपाल) में मजदूरी का काम मिला। वहां के डायरेक्टर जगदीश स्वामीनाथन ने पूछा कि क्या तुम अपने यहां के त्योहार , शादी ब्याह दीवार पर उकेर सकती हो ? मैं चट से बोल पड़ी कि यह काम मुझे आता है।



10 दिन की पेंटिंग के बदले 1500 रुपए मिले। लेकिन घर वालों को शक हुआ कि इसे इतने पैसे कौन दे सकता है। 

इसलिए मेरा भारत भवन जाना बंद हो गया।

फिर एक दिन स्वामीनाथन के समझाने पर मेरा पति मुझे भारत भवन लेकर पहुंचा । 1500 रुपए से शुरुआत हुई।

फिर अमेरिका से भी न्यौता आया । यहां दुनियाभर के कलाकारों के सामने मैंने पिथौरा पेंटिंग को प्रदर्शित किया। 


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