के. वेंकटप्पा एक चित्रकार , मूर्तिकार , और वीणा वादक थे। लेकिन वह मुख्यतः चित्रकार के रूप में जाने गए।
इनके प्राकृतिक चित्र व पक्षी चित्र मंसूर नामक मुगल चित्रकार से मिलते जुलते हैं इसलिए इन्हें कला समीक्षकों ने " बंगाल का मंसूर कहा " हैं।
के. वेंकटप्पा के पूर्वज दक्षिण हिन्दू राज्य विजय नगर के दरबारी चित्रकार रहे थे।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मैसूर कला महाविद्यालय (गवर्नमेंट कालेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट कोलकाता) में हुई । और इन्होंने अवनीन्द्र नाथ टैगोर से कला की शिक्षा ली। और यही पर नंदलाल बोस इनके सहपाठी रहे।
1910 में के. वेंकटप्पा अजन्ता के भित्तिचित्र की अनुकृतियां तैयार करने में लेडी हेरिंघम के दल में शामिल थे।
के. वेंकटप्पा लघु चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध थे। यह हाथी दांत पर लघु चित्रों की रचना करने में भी माहिर थे।
वेंकटप्पा ने हाथी दांत पर व्यक्ति चित्रण भी किया। इनके व्यक्ति चित्रों में अवनींद्र नाथ टैगोर एवं रामास्वामी मुदालियार के चित्र महत्वपूर्ण हैं।
के. वेंकटप्पा के चित्र प्रायः पुराणों व प्राचीन आख्यानों पर आधारित रहे। जैसे रामायण, महाभारत, राम-सीता।
1913 में वेंकटप्पा पर्सी ब्राउन तथा गगनेन्द्र नाथ टैगोर के साथ उत्तराखंड की यात्रा पर गए और वहा इन्होंने हिमालय की प्राकृतिक छटा को अपने दृश्य चित्रों के माध्यम से दर्शाया। इन्होंने अधिकांश चित्र अपने स्टूडियो में बैठकर स्मृति एवं कल्पना से बनाये।
के. वेंकटप्पा प्राकृतिक दृश्य चित्रण करने में माहिर थे। प्रकृति से सम्बंधित उनके द्वारा बनाई गई श्रृंखला " ऊटी और कोडाइकनाल के दृश्य चित्र " (जलरंग में) महत्वपूर्ण हैं।
24 नवंबर 1967 को कर्नाटक सरकार ने इनके नाम से बेंगलुरु में " वेंकटप्पा आर्ट गैलरी " की स्थापना की। यहाँ वेंकटप्पा के जल रंग व प्लास्टर में उकेरे उभारदार शिल्प प्रदर्शित हैं।
- इनके द्वारा बनाये गए महत्वपूर्ण चित्र-
- राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका अर्पण (रिलीफ चित्र)
- शिव का तांडव नृत्य (रिलीफ चित्र)
- राम का विवाह
- महाराणा प्रताप
- दमयंती
- लंका तक पुल का निर्माण (महत्वपूर्ण)
- सीता व स्वर्ग मृग (महत्वपूर्ण)
- वीणा की मतवाली (महत्वपूर्ण)
- संगीत मंडली (महत्वपूर्ण)
- महाशिवरात्रि
- टीपू सुल्तान
- मृततृष्णा (महत्वपूर्ण)
- चरत पक्षी (महत्वपूर्ण)
- सूर्यास्त (अन्तिम कृति)
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