थांगका पेंटिग (Thangka Painting ) क्या हैं:
थंगका पेंटिंग, जिसे टंगका, थंका या टंका के नाम से भी जाना जाता है। थंगका कला भारतीय, नेपाली तथा तिब्बती संस्कृति की मिसाल है। इस के माध्यम से तिब्बती धर्म, संस्कृति एवं दार्शनिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया जाता रहा है। इस का निर्माण सामान्यत: सूती वस्त्र के धुले हुए काटल पर किया जाता है।
तिब्बती शब्द 'थंगका' का शाब्दिक अनुवाद है, लिखित संदेश। यह कला के रूप में, एक उच्च विकसित और महत्वपूर्ण माध्यम है, जिसके माध्यम से बौद्ध दर्शन को समझाया जा सकता है।
थंगका पेंटिग स्क्रॉल पेंटिग की तरह होती हैं:
थंगका पेंटिंग, ऐक्रेलिक पेंटिंग की तरह सपाट कैनवास पर नहीं बनाई जाती। वे स्क्रॉल-पेंटिंग की तरह ज्यादा होती हैं, जहां एक पिक्चर पैनल को एक कपड़े के ऊपर चित्रित किया जाता है, जिसे बाद में एक रेशम के बोर्डर/कवर पर लगाया गया है।
आम तौर पर, थंगका बहुत लंबे समय तक चलता है, और अगर उसे नमी से दूर रखा जाए, तो उसकी चमक भी लंबे समय तक बरकरार रहती है।
विषय वस्तु और डिजाइन की दृष्टि से कई तरह के थंगका होते हैं।
थंगका पेंटिग की विषय वस्तु:
पेंटिंग्स की विषय वस्तु, बुद्ध, बोधिसत्व, देवियां, क्रोधी जीव, मनुष्य, निर्जीव वस्तुएं (स्तूप), मठ की वस्तुएं, धार्मिक वस्तुएं, पशु, पौधे, फूल आदि हो सकते हैं।
निर्माण शैली:
थांका निर्माण के लिए एक वस्त्र का उपयोग किया जाता है। वस्त्र के मध्य भाग में प्रमुख देव/देवी या गुरु का चित्र होता है और उनके चारों और उन से सम्बन्धित कार्यो को दर्शाया जाता है।
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