ग्राफिक विधा के स्तम्भ कलाकार हैं गोपाल दत्त शर्मा: अवधेश मिश्र

 

छापाकार गोपाल दत्त और उनकी पेंटिंग

उत्तर प्रदेश के प्रमुख छापा कलाकार (प्रिंटमेकर) गोपाल दत्त शर्मा का 80 साल की उम्र में 23 सितंबर 2021 को निधन हो गया। इन्होंने ग्राफिक कलाकार के रूप में काफी ख्याति अर्जित की।

श्री गोपाल दत्त शर्मा की कला यात्रा के बारें में उत्तर प्रदेश के प्रमुख चित्रकार अवधेश मिश्र ने एक महत्वपूर्ण लेख प्रस्तुत किया हैं, जो 26 मार्च 1999 को कुबेर टाइम्स, लखनऊ समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था। जो इस प्रकार है-

चित्रकार अवधेश मिश्र


कला जगत में लखनऊ का इतिहास रहा है यह मुगलों के बाद कंपनी शैली के एक स्कूल के नाम से जाना गया तो, नवाबों के समय की दस्तकारी/शिल्पकारी विश्वविख्यात रही। यहां के वास्तु की अपनी पहचान हैं। 

बीसवीं सदी के आरंभ में जब औपचारिक रूप से कला प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ और ललित मोहन सेन रॉयल अकादमी से प्रशिक्षण लेकर लौटे तो पाश्चात्य कला स्वरूप के अनुरूप अन्य विषयों के साथ ही 'ग्राफिक कला' विधा से भी लोगों का साक्षात्कार कराया।

सेन साहब द्वारा प्रारंभ किया गया लीनोकट ,वुडकट एक्वाटिंट तथा ग्राफिक के अन्य 'एक्सपेरिमेंट वर्क' लखनऊ को एक पहचान दिलाई।

गोपाल दत्त शर्मा लखनऊ के एक ऐसे वरिष्ठ कलाकार हैं जो कला व शिल्प महाविद्यालय में शिक्षण कार्य करते हुए केंद्र में नियमित रूप से अपने अनुसंधानों में तल्लीनता से निमग्र हैं।

मेरठ में 15 नवंबर 1941 में जन्म लिए श्री शर्मा जी ने कर्मभूमि के रूप में लखनऊ को ही चुना। 

1969 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय से 'डिप्लोमा इन फाइन आर्ट' 1970 में पॉटरी में प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम 'एडवांस वर्क इन डिजाइन' 1971 में 'फ्रेस्को म्यूरल में प्रशिक्षण 1980 तथा सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग 1981 में प्राप्त कर कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ में म्यूरल व ग्राफिक्स का प्रशिक्षण दे रहे हैं।

गोपाल दत्त शर्मा दिल्ली ( 1970,78), बनारस (1974), कानपुर (1978), लखनऊ (1884) , भुवनेश्वर (1988) सहित राज्य स्तरीय व अखिल भारतीय स्तर के कई कला / ग्राफिक कार्यशालाओं में सहभागी रहें। 

देश के वरिष्ठ ग्राफिक कलाकार के रूप में श्री शर्मा जी ने काफी ख्याति अर्जित किया। राष्ट्र की अनेक संस्थाओं ने अपने सम्मान व पुरस्कारों से विभूषित किया,जिनमे उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी (1969), कला वीथिका कानपुर (1971), अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी युवा कल्याण, खेलकूद व संस्कृति विभाग बिहार (1986), अखिल भारतीय रेखांकन प्रदर्शनी (आल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी- नई दिल्ली) 1986, ललित कला अकादमी लखनऊ (1988), राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी , ललित कला अकादमी रवींद्र भवन- नई दिल्ली आदि उल्लेखनीय हैं। 

इसके अतिरिक्त मेरठ,  बॉम्बे हैदराबाद ( 1971,1973, 1977) एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स कलकत्ता, नवी अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनी - आइफेक्स, भारत महोत्सव यू. एस. ए. (1984-1986) तथा अन्य राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में नियमित रूप से भागीदारी निभा रहे है।

वरिष्ठ कलाकार गोपाल दत्त शर्मा जो आज ग्राफिक कलाकार के रूप में देश-विदेश में अपनी एक पहचान रखते हैं इनकी कला यात्रा का प्रारंभिक दौर देखा जाए तो लैंडस्केप पेंटर के रूप में छवि उभर कर आती है। 

सिटी स्केप, सी-स्केप, हिल-स्केप, लैंडस्केप जो यथार्थ (आन द सपाट) रचनात्मक दोनों ही रूप में चित्रित किये गए।  गोमती बैराज के लैंडस्केप, कुहरे में लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतें, बाढ़ के दृश्य आंधी का मार्मिक चित्रण किया गया है। 

प्रकृति के रहस्यों से साक्षात्कार कर गोपाल जी ने चित्रों से अधिक मूर्तियों में अपना रुझान कर लिया। पॉटरी और मूर्तियां जिनमें टेराकोटा मार्बल और सीमेंट में अपना प्रयोग किया पर जो आनंदाभूति सिरेमिक के ग्लेज्ड पॉट में मिली वह अन्यंत्र नही। सिरेमिक में भी हिंदू धर्म के मांगलिक प्रतीकों जो चित्र में दिखते थे, का विधिवत प्रयोग किया।

पॉटरी सिरेमिक के उल्लेखनीय कृतियों में मछली विशेष रूप से कई आकारों और संयोजनो में सामने आई हैं। कई ऊर्ध्व आकार तो कहीं क्षैतिज आकार ,कहीं सिलेंडर फॉर्म तो कहीं तरल और फैलाव वाले आकारों में संयोजन उत्कृष्ट रचना के रूप में दृष्टव्य हैं।

शर्मा जी का अन्य और महत्वपूर्ण पक्ष हैं ग्राफिक का जिसमें लिनोकट वुडकट में दैनिक जीवन, पौराणिक और व्यंग्यात्मक चित्रों की रचना स्वाभाविक और मिश्रित स्वाभाविक शैली ने किया है। एक्वाटिंट  में किया गया कार्य ही शर्मा जी को ऊंचाइयों तक पहुंचा सका है,  जिसमें उन्होंने अन्वेषणात्मक कार्यों को ही महत्व दिया। एक्सपेरिमेंटल कार्यों में अकस्मात प्राप्त प्रभावों को विकसित और संतुलित कर उसे संयोजित किया है। इन चित्रों में तेल और पानी के मिलने से बना टेक्सचर तथा सूखे तूलिकाघातो के टेक्सचर का प्रभाव आकर्षक है। 

एक उत्कृष्ट एक्वाटिंट का चित्र " मछली" जिसे चार रेखाओं द्वारा ऊर्ध्व चित्रों को विभक्त किया गया है, पर एक बड़ी मछली ही चारों भागों में सामंजस्य स्थापित कर रही हैं। 

अतः कह सकते हैं की शर्मा जी का तकनीकी और वैचारिक दोनों ही पक्ष समानांतर संतुलित और सशक्त है। अनुभूतियों तथा  भावनात्मक के धनी होने के कारण अपनी अमूल्य कृतियों द्वारा कला क्षेत्र में योगदान देते रहेंगे और सांस्कृतिक पहचान के लिए विख्यात लखनऊ नगर में ग्राफिक कलाकारों का उत्साहवर्धन करते रहेंगे। ऐसी इस वरिष्ठ कलाकार से आशा एवं विश्वास है। - अवधेश मिश्र


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