पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं सांस्कृतिक कार्य निदेशालय, झारखंड सरकार के संयुक्त तत्वधान में 2 जनवरी 2021 को ऑड्रे हाउस रांची में दस दिवसीय ट्राईबल पेंटिंग कार्यशाला का उद्घाटन किया गया।
श्री दीपक कुमार शाही( निदेशक, संस्कृति, सांस्कृतिक कार्य निदेशालय झारखंड सरकार) डॉ कुमार संजय (निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ,क्षेत्रीय केंद्र रांची) श्री गिरधारी राम गौंझू, (पूर्व अध्यक्ष जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची) ,महादेव टोप्पो वरीय साहित्यका, गुंजल इकर मुंडा सहायक ,नंद किशोर साहू एवं कार्यक्रम समिति सदस्य ई जेड सी सी चंद्रदेव सिंह, ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कैनवस पर कलाकृति बनाकर किया।
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श्री गिरधारी राम गौंझु( पूर्व अध्यक्ष जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची) जी ने चित्रकला की इतिहास एवं आज के परिदृश्य का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए बताया कि झारखंड की जादो पाटिया, सोहराय ,कोहबर या पाटकर पेंटिंग आदिकाल से चली आ रही है और सच पूछिए तो यही आदिकाल की चित्रकला की उत्पत्ति है जो आदिकाल में अपने गुफाओं में लोक नृत्य का चित्रण, शिकार का चित्रण ,प्रकृति का चित्रण किया करते थे आगे चलकर घरों में घरों के बाहरी दीवार पर एवं विवाह आदि रस्मों में भी चित्रकला का प्रयोग होने लगा जो आज भी विद्यमान है और काफी गौरवशाली है ।ट्राइबल पेंटिंग अपने आप में अनोखा है उस समय ना किसी प्रकार की औजार थी फिर भी एक समान सभी आकृतियां होती थी जो सब को अपनी और आकर्षित करती थी उसी में से एक पेंटिंग जोदो पाटिया पेंटिग है जिसमे एक श्रृंखलाबध तरीके से किसी कहानी का चित्रण किया जाता था जो आगे चलकर फिल्म निर्माण का भी काम हुआ इसीलिए कहा जाता है कि जो लोक कला है वही आगे चलकर अविष्कार कहलाता है।
कार्यशाला 10 दिनों तक चलेगा इसका समापन 11 जनवरी 2021 को होगा। प्रशिक्षण कार्य डॉ रामदयाल मुंडा कला भवन में सुबह 10:00 बजे से 2:00 बजे तक चलेंगे । जहां पर डॉ रामदयाल मुंडा कला भवन के दीवारों का सुंदरीकरण जादो पटिया ,सोहराई,कोहबर एवं पाटकर पेंटिंग के द्वारा किया जाएगा। 9 प्रशिक्षक कलाकारों को प्रशिक्षित करेंगे ताकि वह राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें।
ट्राइबल आर्ट या जनजातीय कला क्या हैं?
हम सभी जानते हैं भारत के हर प्रदेश में कला की अपनी एक शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्परागत कला का एक अन्य रूप है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
भारतीय जनजातीय कला के विभिन्न माध्यमों हैं जैसे- मिट्टी के बर्तनों, पेंटिंग, मेटलवर्क, ढोकरा आर्ट, पेपर-आर्ट, बुनाई इत्यादि।
ट्राइबल पेंटिंग या जनजातीय कला आमतौर पर दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों, जंगलों से संबंधित हैं।
भारतीय जनजातीय चित्रों में सौरा पेंटिंग, गोंड पेंटिंग, पिथोरा पेंटिंग, वारली पेंटिंग, थंका, इत्यादि हैं।
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