झारखंड की सोहराय व कोहबर कला को मिलेगा GI टैग। प्रदेश की पहली कलाकृति बनी।

Sohrai and Kohbar Art:
झारखंड के हजारीबाग के गांवों के घरों की मिट्टी के दीवारों पर उकेरी जाने वाली सोहाराय व कोहबर कला पर कोई और दावा नहीं ठोक सकता। 

देश में अब कोई भी इसे अपनी या अपने राज्य की कलाकृति नहीं बता सकता। सोहराय व कोहबर कला को जल्द जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (जीआइ टैग) मिलने जा रहा है। इसकी सभी प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। संभवत: जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में टैग प्रदान कर दिया जाएगा। 

जीआइ टैग मिलने के बाद यह कला विश्व के किसी भी कोने में जाएगी, तो झारखंड से इसकी पहचान जुड़ी रहेगी।

जैसे मधुबनी पेटिंग के लिए बिहार जाना जाता है, वैसे ही सोहराय व कोहबर कला के लिए झारखंड जाना जाएगा। 

प्रदेश की पहली कलाकृति बनी:

अब तक किसी भी श्रेणी में झारखंड से जुड़े किसी भी उत्पाद को जीआइ टैग प्राप्त नहीं है। ऐसे में यह सोहराय व कोहबर कला सीधे तौर पर झारखंड की पहचान से जुड़ जाएगा। कलाकृति के साथ इससे जुड़े कलाकारों को भी पहचान मिलेगी। प्रदेश की पहली कलाकृति होगी, जिसे यह टैग मिलेगा।



क्या है सोहराय व कोहबर कला?

कोहबर और सोहराय कला झारखंड की दो प्रमुख लोककला हैं। चित्रकला मानव सभ्यता के विकास को दर्शाता है। मूल रूप में दोनों चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है। मसलन लाल, काला, पीला, सफेद रंग पेड़ की छाल व मिट्टी से बनाए जाते हैं। सफेद रंग के लिए दूधी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। काला रंग
भेलवा पेड़ के बीज को पिस कर तैयार किया जाता है। इनकी पेंटिंग में ब्रश भी प्राकृतिक ही होते हैं। उंगलियां, लकड़ी की कंघी (अब प्लास्टिक वाली), दातुन से चित्र उकेरे जाते हैं। मिट्टी के घरों की अंदरूनी दीवार को ब्लैक एंड व्हाइट बेल बूटा, पत्तों, मोर का चित्र बनाकर सजाया जाता है।

साभार-dainikjagran.com

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