जब भी हम भारतीय कला के तमाम आयामों और विकास यात्रा की चर्चा करते हैं, उपेन्द्र महारथी के योगदान को कभी भूल नहीं सकते। बेशक महारथी आज की पीढ़ी के नौजवान या कला से जुड़े तमाम लोगों के लिए एक अनजाना सा नाम हो, लेकिन जब आप उनकी कला यात्रा के हर पहलू से रू-ब-रू होते हैं तो लगता है मानो किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए हों। उसमें यशोधरा की पीड़ा है, समुद्रगुप्त के किस्से हैं, शिव और पार्वती का सौंदर्य है, मौर्यकाल की कला चेतना है, गौतम बुद्ध का दर्शन भी है और महात्मा गांधी की दृष्टि भी।
गांधी जी पर काम करने वाले कलाकारों की देश में कमी नहीं है, लेकिन जिस कलाकार ने गांधी जी को करीब से देखा, उनके दर्शन को समझा और उन्हें गौतम बुद्ध से जोड़ा, वह उपेन्द्र महारथी ही हैं। 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के दौरान जिस 32 साल के नौजवान कलाकार ने पूरे अधिवेशन स्थल पर अपनी शानदार पेंटिंग्स और कलाकृतियों के जरिये भारत के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं को जीवंत कर दिया था, वह उपेन्द्र महारथी ही थे।
दरअसल, पूरे परिसर को इस अकेले कलाकार ने डिजाइन किया और वहां अपने देश के बहुआयामी लोककला और संस्कृति की एक नई दुनिया बसा दी। इसी दौरान महारथी ने गांधी जी को बहुत करीब से देखा, उनकी भाव भंगिमाएं पकड़ीं और उनके तमाम जीवंत चित्र बना डाले।
नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (जयपुर हाउस) गांधी जी के जन्म की 150वीं सालगिरह को बेहद कलात्मक तरीके से मनाया था। तमाम कला प्रदर्शनियों के ज़रिये गांधी जी को अलग-अलग अंदाज़ में पेश किया गया था। लेकिन इन सबसे एकदम अलग इसी कड़ी में सबसे अहम आयोजन जो हुआ वह उपेन्द्र महारथी के वृहद कला संसार के रूप में हुआ।
महारथी की कला के विविध आयामों को पूरी गैलरी में कुछ इस कदर उतारा गया था मानों आप उसी कालखंड में पहुंच गए हों। इसके लिए एनजीएमए (नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट) के महानिदेशक अद्वैत गणनायक ने खुद महीनों मेहनत की और महारथी के संसार को अपनी विशाल गैलरी में पुनर्जीवित कर दिया।
उपेन्द्र महारथी को पहले अद्वैत भी ठीक से नहीं जानते थे, लेकिन जब उन्होंने पटना में उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान को देखा और उनके बारे में पहले की गई एनजीएमए की पहल के बारे में जाना तो तय कर लिया कि अब उपेन्द्र महारथी के कला संसार की पूरी परिकल्पना को साकार कर देंगे। खामोशी से अपना काम करने वाले अद्वैत गणनायक ने उपेन्द्र महारथी की विरासत को आगे बढ़ा रही उनकी बेटी महाश्वेता महारथी के साथ मिलकर उनके पूरे कला संसार को ज़मीन पर उतार दिया।
जब भी आप बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट्स की बात करेंगे तो पाएंगे कि उसकी आत्मा कहीं न कहीं भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन,उससे जुड़ी शख्सियतों और उनके दर्शन से बेहद प्रभावित है। कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स ने उपेन्द्र महारथी को इस दर्शन से जोड़ा और उस आंदोलन और चिंतन की कलात्मक अभिव्यक्ति की ओर प्रेरित किया।
उपेन्द्र महारथी 1908 में ओड़िसा के पुरी जिले में जन्में, कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़े और बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाई। इसलिए उनकी कला में कलिंग की संस्कृति है, बौद्ध काल की झलक है और भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के नायकों से जुड़ा दर्शन है।
उपेन्द्र महारथी के कला संसार में कला और शिल्प के वो तमाम रूप हैं जो हमारी समृद्ध परंपराओं के साथ-साथ लोकशैली के बारीक कामों की झलक देती है। यहां मधुबनी की पारंपरिक पेंटिंग कला के साथ साथ महारथी ने साड़ी बुनने की एक नई तकनीक और कला विकसित की – बावनबूटी। आप बावनबूटी साड़ी देखेंगे तो उसकी बूटियों के विविध रूपों को देखकर दंग रह जाएंगे। यह उपेन्द्र महारथी की ही देन है। फरवरी 1981 में 73 साल की उम्र में जब उपेन्द्र महारथी का निधन हुआ तो उनके पीछे उनकी कला और शिल्प का एक विशाल संसार था।
उपेन्द्र महारथी एक बेहतरीन शिल्पकार और वास्तु शिल्पी (आर्किटेक्ट) थे। बिहार के राजगृह (राजगीर) के मशहूर विश्व शांति स्तूप से लेकर जापान के गोटेम्बा पीस पगोडा की डिजाइन उपेन्द्र महारथी ने बनाई। बोधगया का मशहूर महाबोधि मंदिर हो,नालंदा का नव नालंदा महाविहार हो, वैशाली म्युजियम हो या बोध गया का गांधी मंडप- ये सभी उपेन्द्र महारथी की देन हैं।
एनजीएमए के खज़ाने में 1996 से महारथी के करीब 900 बेहतरीन कलाकृतियां, वास्तुशिल्प और उनके तमाम काम मौजूद थे,लेकिन इस महान कलाकार को फिर भी कोई उतनी ख्याति नहीं मिल पाई। अद्वैत गणनायक ने इस खजाने से महारथी को बाहर निकाला और अब एनजीएमए का एक बड़ा हिस्सा उनके लिए समर्पित कर दिया।
साभार-अमरउजाला.कॉम
गांधी जी पर काम करने वाले कलाकारों की देश में कमी नहीं है, लेकिन जिस कलाकार ने गांधी जी को करीब से देखा, उनके दर्शन को समझा और उन्हें गौतम बुद्ध से जोड़ा, वह उपेन्द्र महारथी ही हैं। 1940 में कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के दौरान जिस 32 साल के नौजवान कलाकार ने पूरे अधिवेशन स्थल पर अपनी शानदार पेंटिंग्स और कलाकृतियों के जरिये भारत के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं को जीवंत कर दिया था, वह उपेन्द्र महारथी ही थे।
दरअसल, पूरे परिसर को इस अकेले कलाकार ने डिजाइन किया और वहां अपने देश के बहुआयामी लोककला और संस्कृति की एक नई दुनिया बसा दी। इसी दौरान महारथी ने गांधी जी को बहुत करीब से देखा, उनकी भाव भंगिमाएं पकड़ीं और उनके तमाम जीवंत चित्र बना डाले।
नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (जयपुर हाउस) गांधी जी के जन्म की 150वीं सालगिरह को बेहद कलात्मक तरीके से मनाया था। तमाम कला प्रदर्शनियों के ज़रिये गांधी जी को अलग-अलग अंदाज़ में पेश किया गया था। लेकिन इन सबसे एकदम अलग इसी कड़ी में सबसे अहम आयोजन जो हुआ वह उपेन्द्र महारथी के वृहद कला संसार के रूप में हुआ।
महारथी की कला के विविध आयामों को पूरी गैलरी में कुछ इस कदर उतारा गया था मानों आप उसी कालखंड में पहुंच गए हों। इसके लिए एनजीएमए (नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट) के महानिदेशक अद्वैत गणनायक ने खुद महीनों मेहनत की और महारथी के संसार को अपनी विशाल गैलरी में पुनर्जीवित कर दिया।
उपेन्द्र महारथी को पहले अद्वैत भी ठीक से नहीं जानते थे, लेकिन जब उन्होंने पटना में उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान को देखा और उनके बारे में पहले की गई एनजीएमए की पहल के बारे में जाना तो तय कर लिया कि अब उपेन्द्र महारथी के कला संसार की पूरी परिकल्पना को साकार कर देंगे। खामोशी से अपना काम करने वाले अद्वैत गणनायक ने उपेन्द्र महारथी की विरासत को आगे बढ़ा रही उनकी बेटी महाश्वेता महारथी के साथ मिलकर उनके पूरे कला संसार को ज़मीन पर उतार दिया।
जब भी आप बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट्स की बात करेंगे तो पाएंगे कि उसकी आत्मा कहीं न कहीं भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन,उससे जुड़ी शख्सियतों और उनके दर्शन से बेहद प्रभावित है। कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स ने उपेन्द्र महारथी को इस दर्शन से जोड़ा और उस आंदोलन और चिंतन की कलात्मक अभिव्यक्ति की ओर प्रेरित किया।
उपेन्द्र महारथी 1908 में ओड़िसा के पुरी जिले में जन्में, कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़े और बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाई। इसलिए उनकी कला में कलिंग की संस्कृति है, बौद्ध काल की झलक है और भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के नायकों से जुड़ा दर्शन है।
उपेन्द्र महारथी के कला संसार में कला और शिल्प के वो तमाम रूप हैं जो हमारी समृद्ध परंपराओं के साथ-साथ लोकशैली के बारीक कामों की झलक देती है। यहां मधुबनी की पारंपरिक पेंटिंग कला के साथ साथ महारथी ने साड़ी बुनने की एक नई तकनीक और कला विकसित की – बावनबूटी। आप बावनबूटी साड़ी देखेंगे तो उसकी बूटियों के विविध रूपों को देखकर दंग रह जाएंगे। यह उपेन्द्र महारथी की ही देन है। फरवरी 1981 में 73 साल की उम्र में जब उपेन्द्र महारथी का निधन हुआ तो उनके पीछे उनकी कला और शिल्प का एक विशाल संसार था।
उपेन्द्र महारथी एक बेहतरीन शिल्पकार और वास्तु शिल्पी (आर्किटेक्ट) थे। बिहार के राजगृह (राजगीर) के मशहूर विश्व शांति स्तूप से लेकर जापान के गोटेम्बा पीस पगोडा की डिजाइन उपेन्द्र महारथी ने बनाई। बोधगया का मशहूर महाबोधि मंदिर हो,नालंदा का नव नालंदा महाविहार हो, वैशाली म्युजियम हो या बोध गया का गांधी मंडप- ये सभी उपेन्द्र महारथी की देन हैं।
एनजीएमए के खज़ाने में 1996 से महारथी के करीब 900 बेहतरीन कलाकृतियां, वास्तुशिल्प और उनके तमाम काम मौजूद थे,लेकिन इस महान कलाकार को फिर भी कोई उतनी ख्याति नहीं मिल पाई। अद्वैत गणनायक ने इस खजाने से महारथी को बाहर निकाला और अब एनजीएमए का एक बड़ा हिस्सा उनके लिए समर्पित कर दिया।
साभार-अमरउजाला.कॉम
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