संविधान के पांडुलिपि का चित्रण करने वाले प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बसु Nandlal bos


तकरीबन हर एक राष्ट्र अपनी आजादी के बाद अपना संविधान बनाता हैं। भारत ने अपना संविधान लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन की मेहनत के  बाद तैयार संविधान को 26 नवम्बर 1949 को स्वीकार किया गया । 2015 से इसे पहली बार संविधान दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।
विख्यात चित्रकार नंदलाल बोस को भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने का मौका मिला। 
नंदलाल बोस की मुलाकात पं. नेहरू से शांति निकेतन में हुई और वहीं नेहरू जी ने नंदलाल को इस बात का आमंत्रण दिया कि वे भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाएं। 

221 पेज के इस दस्तावेज के हर पन्नों पर तो चित्र बनाना संभव नहीं था। लिहाजा, नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। 



संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला। इन 22 चित्रों को बनाने में उन्हें चार साल लगे। 

पांडुलिपि क्या हैं?-
पाण्डुलिपि (manuscript) उस दस्तावेज को कहते हैं जो एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा हाथ से लिखी गयी हो। जैसे हस्तलिखित पत्र। मुद्रित किया हुआ या किसी अन्य विधि से, किसी दूसरे दस्तावेज से (यांत्रिक/वैद्युत रीति से) नकल करके तैयार सामग्री को पाण्डुलिपि नहीं कहते हैं।

भारतीय संविधान से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातें-
भारतीय संविधान दुनिया में सबसे लंबा संविधान है।
●यह दुनिया का ऐसा अकेला संविधान हैं जो हाथ से लिखा गया। 
●भारतीय संविधान के अंग्रेजी और हिंदी के दोनों संस्करण दिल्ली के रहने वाले प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने इटैलिक शैली में लिखें । रायजादा ने इसके लिए कोई पैसा नहीं लिया बल्कि संविधान के हर पृष्ठ पर अपना और अंतिम पेज पर अपने दादाजी का नाम लिखने की शर्त रखी।
● संसद भवन में आज भी यह मूल प्रति नाइट्रोजन गैस से भरे चेंबर में रखी गई है।
● संविधान की पहली 1000 प्रति देहरादून स्थित प्रेस में लिथोग्राफी प्रिंटिंग की जरिए प्रकाशित की गई थी।

   नंदलाल बसु का कला जीवन

नंदलाल बसु-  ( मास्टर मोशाय/बाबू मोशाय)  अमूर्त चित्रण के विरोधी थे।

इनका जन्म-  3 दिसम्बर 1882 बिहार के मुंगेर जिले में (खड़गपुर गाँव) हुआ।

इनकी मृत्यु- 16 अप्रैल 1966 को हुई।

इन्होंने अपने गुरु अवनीन्द्र नाथ टैगोर से कला की शिक्षा ली।


"सती का देह त्याग" शीर्षक चित्र पर 'इंडियन सोसायटी ऑफ ओरियंटल आर्ट' की प्रथम प्रदर्शनी में 500₹ का पुरस्कार मिला।

1919 में रविन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा शांति निकेतन में स्थापित विश्व भारती के कला विभाग में कार्य करना प्रारंभ किया। व 1922 में कला भवन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हो गए।

इन्होंने कला भवन के कलाकारों के लिए "कारू संघ" की स्थापना की थी।

1909 में "चयनिका" काव्य संग्रह के लिए चित्र बनाये।

1909-10 में 'अजन्ता की अनुकृतियां ' बनायी।


1921 में 'बाघ की अनुकृतियां' बनायी।

इन्होंने स्याही व पेंसिल का प्रयोग करते हुए असंख्य 'कार्ड चित्र ''आटोग्राफ चित्र'तैयार किये। इस प्रकार के चित्रो का प्रचलन सर्वप्रथम इन्ही के द्वारा किया गया।

'रविन्द्रनाथ के काव्य संग्रहो'व 'जगदीशचंद्र बसु के विज्ञान भवन' के लिए चित्र बनाये।

6 अप्रैल 1930 को गांधी जी द्वारा शुरू किए गए "सविनय अविज्ञा आंदोलन" में भाग लिया।और "गांधी जी के दांडी मार्च" का चित्र भी बनाया।

1936 में हुए लखनऊ अधिवेशन के दौरान छात्रों से मिलकर भारत कला प्रदर्शनी का आयोजन किया।

1937 में फैजपुर (कलकत्ता) कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेकर मंच सज्जा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

1938 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के लिए पोस्टर तैयार किये।

इन्होंने "रूपावली" , "शिल्पकथा" , "शिल्पचर्चा" आदि पुस्तकें लिखी।

इन्होंने भित्तिचित्रण भी किया। इनके द्वारा निर्मित भित्ति चित्र "कला भवन" शांतिनिकेतन तथा बड़ौदा के "कीर्ति मन्दिर " में देखने को मिलते हैं।


यहाँ के भित्ति चित्रों में "गंगा अवतरण" प्रसिद्ध हैं।

1928 में शांतिनिकेतन में हलकृष्ण उत्सव की स्मृति में इटालियन भित्तिलेप चित्रशैली में एक विशाल भित्तिचित्र " दूल्हे की सवारी" बनाया।

भित्तिचित्र को चित्रित करने की तकनीक को नंदलाल बसु ने अपनी पुस्तक "शिल्पचर्चा" में विस्तार से समझाया हैं।

इन्होंने लगभग 10,000 चित्रों की रचना की थी।

इनके द्वारा बनाये गए अन्य प्रमुख चित्र इस प्रकार हैं।
 रामायण व महाभारत से संबंधित चित्र हैं
परिणय
सती
सती का देह त्याग (most imp.)
अहिल्या उद्धार
भीष्म प्रतिज्ञा
कृष्ण व अर्जुन आदि
श्री रामचन्द्र

अन्य धार्मिक पौराणिक चित्र-
उमा का तप
वीणा वादिनी( महाश्वेता)
शिव का विषपान(most imp.)
राधा का विरह
महिषासुर मर्दिनी
बुध तथा मेमना

ऐतिहासिक चित्र हैं- 
पद्मसिंह व भीमसिंह
मीराबाई का जीवन
राजगृह

जनजीवन से सम्बंधित चित्र हैं-
ग्राम्य कुटीर
संथाल युवती
चंडालिका
सारंगी वादन


प्रकृति समन्धित चित्र- 
जावा पुष्प
जलता हुआ चीड़ का वृक्ष
गुल दाउदी
गंगा नदी में नाव

व्यक्ति चित्र-
सी. एफ. एन्ड्रूज 
के. एम. मजूमदार
वीरेन गोस्वामी
हीरेन्द्र मुखर्जी आदि

पुरस्कार व सम्मान

1950 में "डी लिट्" की उपाधि ( bhu). 
1951 में इन्होंने शांतिनिकेतन से अवकाश ग्रहण किया। इन्हें देश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया।

1952 में "देशिकोत्रंम" (विश्व भारती)

1954 "पदम विभूषण" ( भारत सरकार)

1957 "डी लिट्" (कलकत्ता विवि)

1958 "रजत जयंती पदक" ( कलकत्ता ललित कला अकादमी)

1963 "डी लिट्" (रविन्द्र भारती विवि)

1966 "रविन्द्र शताब्दी पदक" (एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता) 

●ये एक ऐसे पहले भारतीय कलाकार थे , जिनकी कलाकृतियों पर सर्वप्रथम " रंगीन वृत चित्र" ( डाक्यूमेंट्री) तैयार किया गया।

चित्रकला से जुड़े। हमें इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, ट्विटर पे फॉलो करें👇
🌐instagram
🌐facebook
🌐twitter





Post a Comment

और नया पुराने