देश और दुनिया मे अपनी खूबसूरती को लेकर विख्यात लेकसिटी उदयपुर को अब एक और नई पहचान मिल गई है।
मेवाड़ की सैकड़ों साल पुरानी कोफ्तगिरी मेटल शिल्प कला Koftgiri (Metal Art) को जीआई टैग मिल गया है। बीकानेर की उस्ता कला के बाद सरकार ने राजस्थान की सैकड़ों साल पुरानी कोफ्तगिरी मेटल शिल्प कला को जीआई टैग दिया गया है।
राजा- महाराजाओं के लिए बनते थे हथियार:
उदयपुर में रियासत काल से ही सिकलीगर समाज के लोग कोफ्तगिरी मेटल का काम करते आ रहे है। पहले ये लोग राजा- महाराजाओं के लिए तलवारें, ढाल, खंजर सहित अन्य औजार बनाने के लिए अपनी कलाकारी करते थे, लेकिन समय में आए बदलाव के साथ ही इन पौराणिक हथियारों का उपयोग कम हो गया। ऐसे में इस कला से जुड़े सिकलीगर समाज के लोग इस काल से दूर होते गए, लेकिन अब इस कला को जीआई टैग मिलने सेइसमें काम करने वाले कलाकारों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी।
यह कला करीब 300 वर्षों पूरानी है। रिहासत काल में कलाकार पुरखे राजा महाराजाओं वे यहां काम करते थे। महाराजाओं के लिए इस प्रकार की खास कारीगरी वाली तलवारे, ढाले, छूरिया तैयार की जाती थी।
कैसे की जाती है यह कला:
कोफ्तगिरी का काम करने वाले कलाकारों का कहना है कि वह मेटल के ऊपर सोने और चांदी का आकर्षक काम करते हैं. तलवार, ढाल और अन्य औजारों को आकर्षक रूप देते हैं. तलवार एक हत्था बनाने में कई बार डेढ़ से 2 महीने का भी समय लग जाता है. उनके कला की कीमत उसमें किए जाने वाले काम पर निर्भर करती है. जितना बारीक वर्क वे मेटल के ऊपर करेंगे उसकी कीमत उतनी ही अधिक होगी, लेकिन उसकी कीमत 15 से 20 रुपए से शुरू होती है. जो लाखों रुपए तक जाती है।
आपको बता दे अब तक राजस्थान की 16 हस्त कलाओं और वस्तुओं को जीआइ टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) या भौगोलिक संकेतक मिल चुका था, लेकिन अब हाल ही 5 और हस्तकलाओं के नाम इसमें शामिल हो चुके हैं। इनमें उदयपुर की कोफ्तगिरी, राजसमंद नाथद्वारा की पिछवाई कला, जोधपुर की बंधेज, बीकानेर की उस्ता कला और हस्त कढ़ाई कला शामिल हुई हैं।
इसके साथ ही अब राजस्थान की 21 कलाओं और वस्तुओं को जीआइ टैग हासिल हो चुका है।
मुख्य रूप से कोफ्टगिरी शिल्प का उपयोग तलवारों और खंजरों के हैंडल और उपयोगी वस्तुएं जैसे बक्से, कटलरी, शिकार चाकू आदि बनाने में किया जाता था।
आसान शब्दों में कहें तो कोफ़्तगिरी कला हथियारों को अलंकृत करने की एक कला है। कोफ़्तगिरी शब्द लोहे को "पीट-पीट कर" उस पर किसी कलात्मक पैटर्न को उभारने की क्रिया को कहते हैं।
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