इन्होंने दिल्ली के दरबार हाल में अर्द्ध वृत्ताकार " चित्रलेखा " का अंकन किया, जो कि बहुत लोकप्रिय हुआ था।
श्री अहिवासी का जन्म (6 जुलाई 1901-1974) में मथुरा में (बलदेव ग्राम) हुआ था।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर (गुजरात) में हुई थी। इनके पिता ध्रुपद गायन शैली के उच्च कोटि के गायक थे।
अहिवासी ने जे जे स्कूल आफ आर्ट से शिक्षा प्राप्त की और उस समय वहां के प्रिंसिपल ग्लैडस्टोन सालोमन थे जो श्री अहिवासी की कला से बहुत प्रभावित थे। और इसी वजह से श्री अहिवासी इस आर्ट स्कूल में कला अध्यापक और उसके बाद विभागाध्यक्ष बने।
जे. जे. आर्ट स्कूल में उन्होंने अनेक मेधावी शिष्यों को शिक्षा दी जिनमें के. के. हैब्बर, लक्ष्मण पै, अप्पा भाई आलमेलकर , दिनेश शाह, अब्दुल रहीम आदि प्रमुख थे।
इन्होंने 1957 से 1966 तक चित्रकला विभाग , काशी हिंदू विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
1956 में अजन्ता , एलोरा, एलिफेंटा, बाघ, बादामी, और सित्तानवासल गुफाओं के चित्रों के अनुकृतियों पर उनको ललित कला अकादमी द्वारा स्वर्ण पदक मिला।
इनकी प्रख्यात कृति " डिपार्चर ऑफ मीरा" (मीरा का मेवाड़ त्याग) पर यूनोस्को द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने इस कृति को खरीदकर चीन की सरकार को भेंट स्वरूप दिया था।
श्री अहिवासी ने राजस्थानी चित्रकला से प्रेरणा लेकर भड़कीले व चमकीले रंगों को प्रकृति एवं मानव आकृतियों के साथ आत्मसात कर चित्रण किया।
श्री अहिवासी के रेखाचित्रों का संग्रह " रेखांजली " नाम से प्रकाशित हुआ था।
इनके अन्य प्रमुख चित्र-
मइया मैं नाहि माखन खायौ (टेम्परा), कृष्णा नामाविधान, महाभारत लेखन, सन्देश वाहक, स्वामी हरिदास, महर्षि व्यास, मार (कामदेव) , चवँर धारिणी, इत्यादि
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