●लंदन में 10 जनवरी 2020 से 22 फरवरी2020 तक आयोजित एक प्रदर्शनी में भारतीय कलाकार "बिनोद बिहारी मुखर्जी" की कलाकृतियां आकर्षण का मुख्य केंद्र बनेंगी। इन चित्रों को उन्होंने आंखों की रोशनी जाने के बाद 1950 के अंत से 1960 के अंत तक बनाया था जिनका कोलाज बना कर इस प्रदर्शनी में रखा गया गया है।
●डेविड ज्विरनर गैलरी में दस जनवरी से लगने वाली इस प्रदर्शनी में “बिनोद बिहारी मुखर्जी : ऑफ्टर साइट” मुखर्जी को समर्पित यूरोप में पहली एकल प्रस्तुति हैैं।
●भारतीय, पूर्व एशियाई और पूर्व में प्रचलित कलाओं एवं परंपराओं से प्रभावित होकर चित्र बनाने वाले प्रमुख भारतीय आधुनिकतावादी कलाकार, कला भवन के शुरुआती छात्रों में शुमार हैं।
●एक आंख से दृष्टिबाधित और दूसरी आंख से दूर का देखने में समस्या से पीड़ित मुखर्जी को 1957 में पूरी तरह दिखना बंद हो गया था। डेविड ज्विरनर गैलरी ने एक बयान में कहा, “दृश्य कला को छोड़ने की बजाय, मुखर्जी ने अपने कार्य को और विस्तार दिया और उन्होंने न सिर्फ चित्र बनाने जारी रखे बल्कि स्पर्शनीय माध्यमों में संभावनाएं तलाशीं जैसे मूर्तिकला और खास कर कोलाज।” प्रदर्शनी में मुखर्जी द्वारा अंतिम में तैयार किए गए कई कोलाजों को रखा जाएगा।
● प्रदर्शनी का आयोजन वादेहरा आर्ट गैलरी, नई दिल्ली के सहयोग से किया गया हैं।
●जीवन परिचय-
विनोद बिहारी मुखर्जी का जन्म 7 फरवरी 1904 को 'कोलकाता' के 'बेहाला' नगर में हुआ था।
●बिनोद विहारी मुखर्जी को शांतिनिकेतन में अवनीन्द्रनाथ , गगनेन्द्रनाथ, व नंदलाल बोस आदि के चित्रो ने प्रभावित किया।
●वह 1936 में जापान भी गए जहाँ उन्हें जापानी चित्रकार सोसात्सु की कला ने आकृष्ट किया।
●इन्होंने शांतिनिकेतन के कला भवन, चीन भवन, व हिंदी भवन में भित्तिचित्र भी बनाये।
●कला फ़िल्म निर्माता स्वर्गीय 'सत्यजीत रे' ने उन पर वृत चित्र बनाया , जिसे "इनर आई" टाइटल दिया।
●1949-50 में इन्होंने नेपाल संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया।
●चित्रित विषय व माध्यम-
इन्होंने जल रंग, तैल रंग, टेम्परा पद्धति से कार्य किया। उनके द्वारा चित्रित "टी लवर" चित्र में वृक्षों एवं पौधो की लाल व नीली उभरी हुई पत्तियों, आकृतियों के गहरे नीले केश, स्थूल पुरुषाकृति एवं उनकी मुख मुद्रा चित्रण में विशिष्ट वातावरण उत्पन्न करते हैं।
●मुखर्जी को 1974 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारतीय गणराज्य द्वारा दिये गए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक हैं। इसके अलावा उन्हें देशिकोत्रं(1977), और प्रतिष्ठित रवींद्र पुरस्कार(1980) भी मिला।
11 नवम्बर 1980 को मुखर्जी बाबू का देहांत हो गया।
www.tgtpgtkala.com
एक टिप्पणी भेजें