चित्रकला क्या हैं? क्या यह सिर्फ एक विषय हैं ?
विश्वविद्यालयों, कालेजोें ,और स्कूलों में बाकी विषयों की तरह कला भी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती हैं। लेकिन क्या सच मे कला सिर्फ एक विषय हैं?
एक चित्रकार जब एक चित्र बनाता हैं या जब एक मूर्तिकार मूर्तियां गढ़ता हैं तो उसमें वह अपनी आत्मभिव्यक्ति और अपनी कल्पनाओं के मनोभावों को भी उकेरता हैं।
चित्रकला सिर्फ एक विषय ही नही हैं वरन् यह भावों की आत्मभिव्यक्ति का एक अच्छा माध्यम हैं । मनुष्य अपने अंदर के भाव प्रकट किए बिना नही रह सकता। और आत्मभिव्यक्ति तो मनुष्य की प्राकृतिक प्रवृत्ति हैं।
जैसे कोई लेखक अपने भावों को लेखनी के माध्यम से व्यक्त करता हैं, और एक शायर अपने शायरी के माध्यम से अपने भावों को प्रकट करता हैं , ठीक वैसे ही एक चित्रकार भी अपने चित्रो के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता हैं।
आदिमकाल में जब कोई लिपि नही थी कोई भाषा नही थी, तब प्रागैतिहासिक मानव रेखाओं के माध्यम से ही स्वयं के भावों को उकेरता था। और इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमें गुफाओं और चट्टानों की भित्तियों पर देखने को मिलते हैं।
भारत में चित्रकला की शुरुआत के बारे में बात करे तो यह हमें गुफाओं , चट्टानों की भित्तियों पे उकेरे गए रेखाओं से ही पता चलता हैं। शिला- चित्रो के पुरावशेष मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, ओड़िसा, बिहार, केरल आदि राज्यो के विभिन्न जिलों में स्थित गुफाओं के दीवारों पे देखे जा सकते हैं।
सभ्यता के विकास के साथ परिस्थितिया बदली और साथ ही चित्रकला का भी विकास हुआ।
चुकी भारत एक धार्मिक देश रहा हैं तो चित्रकला पे भी धर्म का भरपूर प्रभाव पड़ा। अजंता और एलोरा गुफाओं में उकेरे गए देवी देवताओं के चित्र इसके सर्वोत्तम प्रमाण हैं। जिन्हें देखकर लोग आज भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
भारत में मुगल शासक अकबर के समय चित्रकला का बहुत विकास हुआ।और चित्रकला के साथ साथ मूर्तिकला का भी विकास हुआ, जो शाहजहाँ के समय उत्कर्ष पे पहुँचा। मुगल के पतन के बाद चित्रकला पहाड़ी क्षेत्रों की तरफ चली गयी, जहाँ राजस्थानी शैली, कांगड़ा या पहाड़ी शैली पनपी और इस शैली के चित्र बने।
इसके बाद अंग्रेज भारत आये।और साथ में अपने यहां की चित्रकला भी लेकर आये और इनकी चित्रकला भौतिकवादी थी।
जिनका प्रभाव भारतीय चित्रकारों पर भी पड़ा। शनैः शनैः चित्रकला का स्वरूप बदला। जल रंग की टैम्परा व वाश पद्धति में चित्र बनने लगे। फिर तैल चित्रण भी शुरू हुआ।और तैल चित्रण शुरू करने का श्रेय भारतीय चित्रकला के पितामह राजा रवि वर्मा को जाता हैं।
वर्तमान में तैल चित्रण तो काफी प्रचलित हैं। और आजकल अधिकतर युवा चित्रकार तैल चित्रण के माध्यम से ही चित्रकारी कर रहे हैं। और साथ ही एक्रेलिक माध्यम भी काफी प्रचलित हैं। जो तैल चित्रण के मुकाबले जल्दी सुख जाता हैं। और समय भी कम लगता हैं।
वर्तमान समय में चित्रकला दो भागों में बाटी जाती हैं।एक हैं 'फाइन आर्ट' (fine art) जिसमें भावाभिव्यक्ति की प्रधानता होती हैं और दूसरी हैं 'कामर्शियल आर्ट' (commercial art) जो अलंकरण प्रधान हैं।
आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट्स में जरूर बताएं।
विश्वविद्यालयों, कालेजोें ,और स्कूलों में बाकी विषयों की तरह कला भी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती हैं। लेकिन क्या सच मे कला सिर्फ एक विषय हैं?
एक चित्रकार जब एक चित्र बनाता हैं या जब एक मूर्तिकार मूर्तियां गढ़ता हैं तो उसमें वह अपनी आत्मभिव्यक्ति और अपनी कल्पनाओं के मनोभावों को भी उकेरता हैं।
चित्रकला सिर्फ एक विषय ही नही हैं वरन् यह भावों की आत्मभिव्यक्ति का एक अच्छा माध्यम हैं । मनुष्य अपने अंदर के भाव प्रकट किए बिना नही रह सकता। और आत्मभिव्यक्ति तो मनुष्य की प्राकृतिक प्रवृत्ति हैं।
जैसे कोई लेखक अपने भावों को लेखनी के माध्यम से व्यक्त करता हैं, और एक शायर अपने शायरी के माध्यम से अपने भावों को प्रकट करता हैं , ठीक वैसे ही एक चित्रकार भी अपने चित्रो के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता हैं।
आदिमकाल में जब कोई लिपि नही थी कोई भाषा नही थी, तब प्रागैतिहासिक मानव रेखाओं के माध्यम से ही स्वयं के भावों को उकेरता था। और इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमें गुफाओं और चट्टानों की भित्तियों पर देखने को मिलते हैं।
भारत में चित्रकला की शुरुआत के बारे में बात करे तो यह हमें गुफाओं , चट्टानों की भित्तियों पे उकेरे गए रेखाओं से ही पता चलता हैं। शिला- चित्रो के पुरावशेष मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, ओड़िसा, बिहार, केरल आदि राज्यो के विभिन्न जिलों में स्थित गुफाओं के दीवारों पे देखे जा सकते हैं।
सभ्यता के विकास के साथ परिस्थितिया बदली और साथ ही चित्रकला का भी विकास हुआ।
चुकी भारत एक धार्मिक देश रहा हैं तो चित्रकला पे भी धर्म का भरपूर प्रभाव पड़ा। अजंता और एलोरा गुफाओं में उकेरे गए देवी देवताओं के चित्र इसके सर्वोत्तम प्रमाण हैं। जिन्हें देखकर लोग आज भी आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
भारत में मुगल शासक अकबर के समय चित्रकला का बहुत विकास हुआ।और चित्रकला के साथ साथ मूर्तिकला का भी विकास हुआ, जो शाहजहाँ के समय उत्कर्ष पे पहुँचा। मुगल के पतन के बाद चित्रकला पहाड़ी क्षेत्रों की तरफ चली गयी, जहाँ राजस्थानी शैली, कांगड़ा या पहाड़ी शैली पनपी और इस शैली के चित्र बने।
इसके बाद अंग्रेज भारत आये।और साथ में अपने यहां की चित्रकला भी लेकर आये और इनकी चित्रकला भौतिकवादी थी।
जिनका प्रभाव भारतीय चित्रकारों पर भी पड़ा। शनैः शनैः चित्रकला का स्वरूप बदला। जल रंग की टैम्परा व वाश पद्धति में चित्र बनने लगे। फिर तैल चित्रण भी शुरू हुआ।और तैल चित्रण शुरू करने का श्रेय भारतीय चित्रकला के पितामह राजा रवि वर्मा को जाता हैं।
वर्तमान में तैल चित्रण तो काफी प्रचलित हैं। और आजकल अधिकतर युवा चित्रकार तैल चित्रण के माध्यम से ही चित्रकारी कर रहे हैं। और साथ ही एक्रेलिक माध्यम भी काफी प्रचलित हैं। जो तैल चित्रण के मुकाबले जल्दी सुख जाता हैं। और समय भी कम लगता हैं।
वर्तमान समय में चित्रकला दो भागों में बाटी जाती हैं।एक हैं 'फाइन आर्ट' (fine art) जिसमें भावाभिव्यक्ति की प्रधानता होती हैं और दूसरी हैं 'कामर्शियल आर्ट' (commercial art) जो अलंकरण प्रधान हैं।
आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट्स में जरूर बताएं।
एक टिप्पणी भेजें